धूप

Friday, December 23, 2011

सूरज से किरनो पर आई,
आकर छत पर ठहरी धूप
घर की मुंडेरों से आँगन तक
जीना जीना उतरी धूप।

नटखट बच्ची बेफिक्री से
दिन भर धूप में खेली धूप
शाम हुई सूरज ने पुकारा,
पीछे पीछे भागी धूप।

गर्मी के दिन, सुस्ती के दिन,
पाँव पसारे सोई धूप
नाम नहीं लेती उठने का,
अलसाई अलसाई धूप।

कंगन सोना, टीके मोती,
कुंदन चेहरे, संदल बाँह
हुस्न की आँच में तपते पैकर,
कितने सूरज, कितनी धूप।

नेयमत-ए-फ़ितरत किसकी नहीं है,
दौलत-ए-इंसाँ किसकी है?
सबका चाँद है, सबका सूरज,
सबकी बारिश सबकी धूप।

चढ़ती उम्र में खिड़की खिड़की
झांके थी अब छिपती धूप,
पूरब से पच्छिम आने तक
कितनी हुई सयानी धूप।